अजनबी

अजनबी

न जाने क्यों तुम्हें देख के मेरा दिल घबराने लगा है,

तेरी यादों के बाग़ में ये फिर क्यों जाने लगा है,,

शायद अब भी तेरी बेवफ़ाई से इसका मन भरा नहीं,

ठोकरों के लिए फिर तुझसे प्यार जताने लगा है,,

अब तेरे बिन दिल तो कहीं लगता ही नहीं,

न जाने क्यों ये अपनी धड़कन चुराने लगा है,,

तुम भूल जाओ मगर ये न भूलेगा कभी,

फिर अपने लभों पर तेरा नाम सजाने लगा है,,

ये तो इसे मालूम है कि तू चाहती है किसी और को,

फिर भी न जाने क्यों ये आँसू बहाने लगा है,,

अब तो नज़रें मिलाते हुए शर्म आती है तुम्हें,

क्योंकि ‘साहनी भी अब अजनबी कहने लगा है,,


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