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आँखें
आँखें आँखें क्या देखते हो इन्होंने तो झपकना ही छोड़ दिया , नाज़ुक नयनों से आंसुओं ने भी टपकना ही छोड़ दिया , , क्या करें बात गम की जो दिया है तेरी यादों ने , इस दिल ने भी अब तो धडकना ही छोड़ दिया , , करीब पहुँचने से पहले लुट गयी मेरी मंजिल , बेजान क़दमों ने भी अब तो टहलना छोड़ दिया , , ढूढ़ते रह गए दिल-ए-चैन व सकूँ, इन लभों ने भी अब तो मुस्कुराना छोड़ दिया , , अब कहने को बाकी बचा ही क्या रहा , तेरी यादों ने भी अब तो बहकना ही छोड़ दिया , , क्या लिखे दास्ताँ दोस्तों ‘साहनी’ की , अब तो स्याही ने भी कलम से निकलना छोड़ दिया , ,
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