आँखें
आँखें
आँखें क्या देखते हो
इन्होंने तो झपकना ही छोड़ दिया,
नाज़ुक नयनों से आंसुओं ने
भी टपकना ही छोड़ दिया,,
क्या करें बात गम की जो
दिया है तेरी यादों ने,
इस दिल ने भी अब तो धडकना
ही छोड़ दिया,,
करीब पहुँचने से पहले लुट
गयी मेरी मंजिल,
बेजान क़दमों ने भी अब तो
टहलना छोड़ दिया,,
ढूढ़ते रह गए दिल-ए-चैन व
सकूँ,
इन लभों ने भी अब तो
मुस्कुराना छोड़ दिया,,
अब कहने को बाकी बचा ही
क्या रहा,
तेरी यादों ने भी अब तो
बहकना ही छोड़ दिया,,
क्या लिखे दास्ताँ
दोस्तों ‘साहनी’ की,
अब तो स्याही ने भी कलम
से निकलना छोड़ दिया,,
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