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हकीकत

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 हकीकत    मैं तो मिट्टी हूँ 'साहनी',मिट्टी में मिल जाऊँगा, शायद तेरे जलवों की कोई कहानी रह जाए,, मेरे गुजरे अतीत की शायद,कोई निशानी रह जाए, मैं तो मिट्टी हूँ............ गर रहूँ ना मैं शायद कल को,जीवन का भरोसा क्या करना, डर है कि आएगा सावन,तेरी आंखों में ना पानी रह जाए,  मैं तो मिट्टी हूँ............

उनकी चाहत

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उनकी चाहत वो गैर की बाँहों में समाते चले गए, हम खून-ए-जिगर अश्क बहाते चले गए,, दिल अपना भी तो था,ख्वाब मिलन के सजोए, वो जुदाई का जहर हमको पिलाते चले गए,, नींदें चुराई आँखों की,करार छीने दिल का, हम जिस्मों-जान उनपे लुटाते चले गए,, मेरे आँसुओं को देख,वो हँसते रहे हमेशा, हम चाहतों के ख्वाब सजाते चले गए,, हम खाकर चोट उनसे,कराहते रहे जीवन भर, हमें वो इस जहाँ से मिटाते चले गए,, उठाते रहे लोग उँगली,हर जगह,हर कदम पर, वादे वफा के हम भी निभाते चले गए,, किया था जिसने वादा साथ जीने-मरने का, 'साहनी' को वो भी कैसे भुलाते चले गए,,

मेरे महबूब

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मेरे महबूब   सर पे बाँधा है जो मैंने,वो एहराम आखिरी है,, बस आप ही मेरे दिल का,अरमान आखिरी हैं,, आप ही मेरा मंदिर,आप ही मेरी मस्जिद, मेरी इबादतों का आप ही कलाम आखिरी हैं,, जुड़ी है डोर आप से पतंग-ए-मेरे दिल की, आप ही तो मेरे जीवन की शाम आखिरी हैं,, रूठें गर आप,रूठ जाऊँ मैं इस दुनिया से, थिरकने वाली मेरे लवों की,आप मुस्कान आखिरी हैं,, आपकी जुदाई से मिले मुझे,सातों जन्मों के गम, मेरी धड़कन की आप ही परान आखिरी हैं,, 'साहनी' हुए दीवाना,देख आपकी सादगी को, मेरी वफाओं का बस आप ही कदरदान आखिरी हैं,,

जादू

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                                                                          जादू   तुम्हारी आवाजों में ना जाने क्यों जादू सा लगता है, दिल थमता नहीं कुछ बेकाबू सा लगता है,, मचल जाता है तुम्हारी इक झलक के लिए, जेठ के प्यासे पथिक की कहानी सा लगता है,, तुम्हारी यादों की बदली जब छाती है दिल-ए-आसमां में, तो हर छोटा जख्म भी बड़ा तूफानी सा लगता है,, जब ए खो जाता है तुम्हारी जुल्फों की घटाओं में, तो रेत पर बने उस पैर की निशानी सा लगता है,, कभी हँसता है,कभी रोता है,ये तो पागलपन है 'साहनी', आदतें जनाब बच्चों की नादानी सा लगता है,,

इजहार

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           इजहार             ⁷ कैसे कहें कि प्यार है,दिल इतना बेकरार है,, चोरी-चुपके ऐसे आना,छन-३ पायल छनकाना,, तुम पे जाँ निसार है,दिल इतना बेकरार है,, मस्ती में आँचल लहराना,शरमा के ऐसे मुस्काना,, सारा जहाँ बेकार है,दिल इतना बेकरार है,, ख्वाबों में रातों को आना,आँखों की यूं नींद चुराना,, कैसे कहें करार है,दिल इतना बेकरार है,, कोयल के जैसे कुकलाना,हाथों का कंगन खनकाना,, जैसे बजे सितार है,दिल इतना बेकरार है,, 'साहनी' से ऐसे रूठ जाना,मनाने पर बाज न आना,, प्रेम से ही संसार है,दिल इतना बेकरार है,,

सिलसिला

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                                                                          सिलसिला तेरी यादों का सिलसिला ना जाने कब तक चलेगा, ना जाने कब तक मेरा दिल घूँट-घूँट के मरेगा,, दोस्त बनके सफर में वफा तूने ना की, ना जाने कब तक वो तारा रोशनी से कहेगा,, सजा ले मेहँदी हाथों की ऐ अपने वो बुझदिल, ना जाने कब तक ये मेरा खून जो बहेगा,, खत्म होती नहीं तेरे इंतज़ारों की घड़ियां, ना जाने कब तक तेरा नाम धड़कन में रहेगा,, आँखों ने भी तो नजरें बिछायी हैं पथ पर, कि शायद अब भी वो चैन,सकूँ वापस चलेगा,, बेवसी है हमारी जो मरते हैं तुझ पर, भूल गए हम लहू का भी दो रंग सजेगा,, कुर्बानी दिल ने जो दी है जिंदगी की, तेरा ही समय तुझ से हर बार यह कहेगा,, जो दर्द 'साहनी' को तूने दी है दोस्ती में, ना जाने कब तक बेचारा तड़पता रहेगा,,

काश

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                                आह! काश हम भी जो होते उस कली बीच खुशबू, दिल लगाने की कोई जरूरत ना होती,, तड़प मेरे दिल की निकलती नहीं आह में, जिंदगी में खुशी की जरूरत ना होती,, ना जाने क्यों दर्द सा उठता है दिल में, दिल को भी चैन की जरूरत ना होती,, फूल खिल जाते जो यूं खिजाओं में ऐसे, तो उन फिजाांओं की जरूरत ना होती,, रोशनी जो मिले जुगनुओं से अँधेरे में, तो दीपक की कोई जरूरत ना होती,, साथ देते अगर तू मेरे सहारे का, तो चाँद-तारों की कोई जरूरत ना होती,, महकता रहे जो तेरा गजरा हमेशा, बहकते कजरों की कोई जरूरत ना होती,, जो चमकती ही रहती तेरे माथे की बिंदिया, तो 'साहनी' को गमों की जरूरत ना होती,,

आँसू

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    आँसू   आँसुओं का जिक्र हमें क्या है करना?, हम तो आँसू बहाते ही चले आए,, मोहब्बत की लड़ियाँ सजाए थे जब-जब, हमें वो इस जहाँ से मिटाते ही चले आए,, नाम उनका सजाकर हम अपने लवों पर, साजों में छुपी सरगम के जैसे गुनगुनाए,, तीर हमने चलाना जिनको सिखाया, उन्होंने ही हम पर निशाने लगाए,, लगाए जो फूल हमने खुशियों के इस चमन में, हर बार वो बेरहमी खिजा बनके आए,, 'साहनी' दिल में दर्द है उनके नज़र-ए-अन्दाज का, धड़कनें थम रही हैं पेन-किलर क्या लगाएँ,,

चाहत

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    चाहत  अक्सर सपने में तू आती क्यों है?, रह-रह के मुझे ऐसे बुलाती क्यों है?,, मैं तो भूलना ही चाहता हूँ तुझे, तू फिर याद आती क्यों है,, इज्जतें,आदर,प्यार है माँ-बाप का, इक पल में इन्हें ऐसे भुलाती क्यों है?,, रूठ जाता हूँ जो मैं अपने अतीत से, यूँ बार-बार ऐसे मनाती क्यों है?,, ये तमन्ना मेरी भी है कि तझे अपना लूँ, पर ये दुनिया हमें ऐसे जलाती क्यों है?,, जमाना न होने देगा मंगलसूत्र तेरे गले का, "साहनी" का ये सिन्दूर लगाती क्यों है?,,