उनकी चाहत

उनकी चाहत

वो गैर की बाँहों में समाते चले गए,
हम खून-ए-जिगर अश्क बहाते चले गए,,
दिल अपना भी तो था,ख्वाब मिलन के सजोए,
वो जुदाई का जहर हमको पिलाते चले गए,,
नींदें चुराई आँखों की,करार छीने दिल का,
हम जिस्मों-जान उनपे लुटाते चले गए,,
मेरे आँसुओं को देख,वो हँसते रहे हमेशा,
हम चाहतों के ख्वाब सजाते चले गए,,
हम खाकर चोट उनसे,कराहते रहे जीवन भर,
हमें वो इस जहाँ से मिटाते चले गए,,
उठाते रहे लोग उँगली,हर जगह,हर कदम पर,
वादे वफा के हम भी निभाते चले गए,,
किया था जिसने वादा साथ जीने-मरने का,
'साहनी' को वो भी कैसे भुलाते चले गए,,


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