जादू

                                                                         जादू 

तुम्हारी आवाजों में ना जाने क्यों जादू सा लगता है,
दिल थमता नहीं कुछ बेकाबू सा लगता है,,
मचल जाता है तुम्हारी इक झलक के लिए,
जेठ के प्यासे पथिक की कहानी सा लगता है,,
तुम्हारी यादों की बदली जब छाती है दिल-ए-आसमां में,
तो हर छोटा जख्म भी बड़ा तूफानी सा लगता है,,
जब ए खो जाता है तुम्हारी जुल्फों की घटाओं में,
तो रेत पर बने उस पैर की निशानी सा लगता है,,
कभी हँसता है,कभी रोता है,ये तो पागलपन है 'साहनी',
आदतें जनाब बच्चों की नादानी सा लगता है,,

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