काश

                             

  आह!




काश हम भी जो होते उस कली बीच खुशबू,
दिल लगाने की कोई जरूरत ना होती,,
तड़प मेरे दिल की निकलती नहीं आह में,
जिंदगी में खुशी की जरूरत ना होती,,
ना जाने क्यों दर्द सा उठता है दिल में,
दिल को भी चैन की जरूरत ना होती,,
फूल खिल जाते जो यूं खिजाओं में ऐसे,
तो उन फिजाांओं की जरूरत ना होती,,
रोशनी जो मिले जुगनुओं से अँधेरे में,
तो दीपक की कोई जरूरत ना होती,,
साथ देते अगर तू मेरे सहारे का,
तो चाँद-तारों की कोई जरूरत ना होती,,
महकता रहे जो तेरा गजरा हमेशा,
बहकते कजरों की कोई जरूरत ना होती,,
जो चमकती ही रहती तेरे माथे की बिंदिया,
तो 'साहनी' को गमों की जरूरत ना होती,,

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