अंदाज़
हर ग़ज़ल का शबाब अलग होता है,,
हर समय पर नई कलियाँ ही खिलाती हैं यारों,
हर वक़्त के मालिक का दरबार अलग होता है,,
हर जुबां की बातों का यकीं क्या करें हम,
हर सागर की गंगा का मजधार अलग होता है,,
उस पतझड़ की ऋतू को भुलाओ न यारों,
हर सावन की ऋतु का फुहार अलग होता है,,
कैसे कहें की बस तू ही एक है मेरे ख्यालों में,
वैसे तो मेरी सुबह का हर ख्वाब अलग होता है,,
हर शाम तेरी यादों का इंतजार रहता है 'साहनी',
हर टूटे हुए दिल का आकर अलग होता है,,
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